अपने आप को जानने-पहचानने-मानने का आनंद-अनुभव

अपने आप को जानने-पहचानने-मानने का आनंद-अनुभव

स्वयं को जान कर, पहचान कर, स्वयं के साथ होना – आपकी प्रसन्नता की कुंजी है।

गोपीकृष्ण बाली

आपकी प्रसन्नता के लिए पहला कदम है – अपने आप के साथ होना, स्वयं के लिए उपस्थित होना। ये आप की खुशी की कुंजी है। ऐसा क्यों है चलिए इसे समझतें है, इस के बारे में बात करते हैं ।

आज की इस दिखावटी ज़िन्दगी की भागदौड़ में , हम अपने काल्पनिक दुनियाँ या वर्चुअल लाइफ में इतने व्यस्त हो गए है कि हम अपनी परछाई (अपने कार्यक्षेत्र के रोल को या अपने सामाजिक औहदे को ही सच समझने लगे है और अपनी स्वयं की वास्तविकता से कोसो दूर हो गए है। यह सब अब इतना सहज हो गया है कि हम उस भ्रम को तोड़ना या छोड़ना नहीं चाहते।

यह बात सिर्फ दूसरों पर लागू नहीं होती। यह स्थिति मेरी, आप की, या ज्यादातर लोगों की हो चुकी है। हम सब एक काल्पनिक दुनियां का हिस्सा बन कर , एक डिजिटल दुनिया में अपनी पहचान बनाने की होड़ में अपने आप को ही भूल चुके है। कभी – कभी हमारी अंतरात्मा पुकारती भी है तो हम कभी जान-बूझ कर तो कभी अज्ञानता वश उस अंदर की आवाज़ को अनदेखा कर देते है।

चलिए आज सच का सामना करते है। सच का सामना यानि स्वयं का सामना।

यदि आप यह समझना शुरू कर देते हैं कि आप क्या हैं बिना इसे बदलने की कोशिश किए, तो आप एक आत्म-परिवर्तन से हो कर गुजरते हैं।

~ जे कृष्णमूर्ति

सब से पहले ‘स्वयं को जानना’ है फिर ‘स्वयं का सामना’ करना हैं।
दो मिनट के लिए आँखों को बंद कर के बैठें (अरे भाई अभी से नहीं – पहले पूरी बात तो जान लो जान लो पढ़ लो ) :)

ऑंखें बंद कर के अपने आप से पूछें – मैं कौन हूँ ? क्या हूँ ?

फिर जो भी विचार मन में आये, जैसा भी लगे उसे समझे। बार – बार यही प्रश्न पूछें – जब तक एक बात पक्की न हो जाये या हर बार एक ही जवाब मिले।

अब ऑंखें खोल कर उस जवाब के बारे में सोचे – समझें। जो मैं अभी हूँ क्या मैं उसे स्वीकार करता हूँ ? क्या मैं अपनी असलियत को ‘ जैसा मैं हूँ ‘ उस को पसंद करता हूँ ? या क्या हम अपनी सच्चाई से रूबरू होने से डरते हैं? क्या हमें लोगों को वैसे ही बताने में डर लगता है जैसे हम हैं? क्या इस बात का डर लगता है कि वे मुझे पसंद करेंगे या नहीं? क्या मैं इस तरह के व्यक्ति को पसंद करूंगा?

क्या हम वास्तव में अपने वास्तविक स्वयं को, अपने सच्चे स्वरुप को जानने के लिए भी तैयार है , मानसिक रूप से खुले हैं, या क्या हमने एक काल्पनिक मैं को स्वयं के लिए निर्मित किया है और उस कल्पना को जिन्दा रखने के लिए, सही सिद्ध करने के लिए एक निरंतर संघर्ष में है?

मित्रों यही काल्पनिक रूप को जीने का यह मॉडर्न तरीका बहुत अधिक नाटकीय है, ख़ोखला है, हल्का है, जिस से यह हमारे जीवन में बहुत अधिक तनाव पैदा करता है, और हमें निराशा और आत्म-अवमानना ​​के लिए तैयार करता है। यही हमारी प्रसन्नता को कम कर देता है, मन में डर पैदा कर देता है और हम एक के बाद एक झूठ का सहारा लेते है इस काल्पनिक दुनियाँ मई अपनी पहचान को कायम करने के लिए।

इस के विपरीत अगर हम अपने सच को अपनायें , अपने को जान कर, पहचान कर, मानें और जो भी हम है – स्वयं को निहारें – फिर उसे निखारें और न सिर्फ अपनी सच्चाई को स्वीकार करें बल्कि उसे बताने में भी शर्म या झिझक महसूस न करें।

शायद हमें स्वयं को जानने – पहचानने – मानने में , स्वयं के साथ होने में थोड़ी मदद की ज़रूरत हो, हमें कुछ तैयारी करनी पड़ सकती है वो बनने में – वह व्यक्ति या व्यक्तित्व बनने में – जिसे हम बनना चाहते थे जिसे हम पसंद करते हैं और प्रेम भी करते हैं। इस सच्चे मैं को पाने के लिए प्रयास – अभ्यास और स्वयं पर विश्वास करना होगा ।

क्या आप तैयार है – अपने आप के साथ रहने के लिए – अपने आप का संग करने के लिए – शायद यही सच्चा और आनंदमय सत्संग होगा। इसलिए ही स्वयं बनना जो हम वास्तविक रूप में हैं – आपकी प्रसन्नता की, खुशी की कुंजी है।


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Aadi Anant

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